यौन दुर्बलता: कहीं आपकी कुंडली में भी ऐसा दोष तो नहीं

पं. गजेंद्र शर्मा, ज्योतिषाचार्य

सुखद वैवाहिक जीवन का मुख्य आधार पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम, तालमेल, सामंजस्य होता है, लेकिन वैवाहिक जीवन में यौन सुख भी उतना ही आवश्यक है। क्योंकि यौन सुख का संबंध उत्तम संतान प्राप्ति से है। कई जोडि़यां सिर्फ इसलिए टूट जाती हैं क्योंकि स्त्री या पुरुष में से किसी एक को यौन दुर्बलता होती है। वे वैवाहिक जीवन का आनंद नहीं उठा पाते। ज्योतिष में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है। ऐसे अनेक योग-दोष बताए गए हैं, जो कुंडली में उपस्थित हों तो व्यक्ति यौन सुख से वंचित रह जाता है। ज्योतिष की यह बात बहुत अच्छी है कि यह सिर्फ योग, दोष की जानकारी ही नहीं देता बल्कि उन परेशानियों से बचने के उपाय भी बताता है।


आइये सबसे पहले जानते हैं यौन सुख, संतृप्ति कौन-कौन से ग्रह, राशि और लग्न से प्रभावित होती है: 

  • चंद्र : चंद्र का प्रभाव मन-मस्तिष्क और शरीर में प्रवाहित होने वाले तरल पदार्थों पर होता है। यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों, गर्भावस्था, मेनोपॉज और फर्टिलिटी को प्रभावित करता है।
  • शुक्र : प्रजनन अंगों, यौन सुख, यौन की इच्छा, यौन गतिविधियों को प्रभावित करता है।
  • सूर्य और मंगल : शरीर के मेटाबॉलिज्म, आंतरिक उर्जा पर असर।
  • तुला राशि : यौन संबंधों की इच्छा, जननांग, जीवनसाथी का स्वास्थ्य।
  • लग्न : शारीरिक और मानसिक क्षमताओं की जानकारी।

ऐसी ग्रह स्थिति ठीक नहीं

जातक के जीवन में यौन सुखों की जानकारी चंद्र, शुक्र, मंगल, सूर्य और तुला राशि के अनुसार ज्ञात की जाती है। इन ग्रहों की स्थितियों और युति के अनुसार यौन संबंधों के बारे में पता लगाया जाता है। ज्योतिष में ऐसे अनेक योग बताए गए हैं जो सेक्सुअल लाइफ को प्रभावित करते हैं।


  • जन्मांग चक्र में यदि मंगल तुला राशि में बैठा हो तो इससे यौन अंग कमजोर रहते हैं। स्त्री-पुरुष को पूर्ण यौन सुख नहीं मिलता।
  • तुला राशि में मंगल या सूर्य के साथ राहु हो तो व्यक्ति यौन रोगों से परेशान रहता है।
  • तुला राशि में एक साथ चार ग्रह आ जाएं तो स्त्री हो या पुरुष वह नपुंसक होता है।
  • कमजोर या नीच का शुक्र यदि स्त्री की कुंडली में सातवें भाव में हो तो वह बांझ होती है, पुरुष की कुंडली में ऐसा योग उसे नपुंसक बनाता है।
  • वक्री या कमजोर मंगल सातवें भाव में हो तो व्यक्ति मूत्राशय के रोगों से पीडि़त होता है।
  • शनि और शुक्र आठवें या 10वें भाव में हो और इनके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो नपुंसकता आती है।
  • छठे या 12वें भाव में कमजोर, शक्तिहीन शनि सेक्स लाइफ खराब कर देता है।
  • शुक्र से शनि छठा या 12वां हो तो स्त्री यौन सुख से वंचित रहती है।
  • तुला राशि के चंद्र पर मंगल, राहु और शनि की दृष्टि हो तो स्त्री या पुरुष अपने पार्टनर को संतुष्ट नहीं कर पाते।
  • लग्नेश स्वग्रही हो और इस पर सातवें शुक्र की दृष्टि हो तो यौन दुर्बलता के कारण संतान सुख नहीं मिलता।
  • शनि छठे या 12वें भाव में जल राशि में हो तो यौन रोग होते हैं। इनके अलावा भी कई योग-दोष हैं जो नपुंसकता का कारण बनते हैं।

यह है निवारण

यदि कुंडली में ऐसे ग्रह दोष हों तो व्यक्ति को शुक्र और मंगल को मजबूत करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए मूंगा के साथ सफेद जिरकन धारण किया जाता है। शुक्र के बीज मंत्र ।। ओम द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ।। और मंगल के बीज मंत्र ।। ओम क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः ।। का नियमित जाप यौन दुर्बलता दूर करता है।

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