आखिर क्या है पांच स्वर्ण तीरोें का रहस्य

पं. गजेंद्र शर्मा, ज्योतिषाचार्य

दुनिया के सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत की मूल कहानी तो लगभग सभी को पता है, लेकिन उसमें ऐसी कई छोटी-छोटी घटनाएं समाई हुई हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। ऐसी ही एक घटना पांच स्वर्ण तीरों के बारे में है।



महाभारत के अनुसार जब कौरव कुरुक्षेत्र का युद्ध हार रहे थे, तो इससे क्रोधित होकर दुर्योधन एक रात पितामह भीष्म के पास जा पहुंचा। दुर्योधन ने भीष्म पर आरोप लगाया कि वे पांडवों के प्रेम में पड़कर कौरवों की ओर से ठीक से युद्ध नहीं कर रहे हैं, इसलिए कौरवों के महारथी लगातार युद्ध में मारे जा रहे हैं। दुर्योधन के ये शब्द सुनकर भीष्म को क्रोध आ गया। उन्होंने अपनी आंखें बंद कर कुछ मंत्र पढ़े। तभी उनके हाथ में स्वर्ण से बने पांच तीर आ गए। यह देखकर दुर्योधन चौंक गया। भीष्म ने कहा इन पांच स्वर्ण तीरों से मैं प्रातः युद्ध प्रारंभ होते ही पांचों पांडवों का अंत कर दूंगा।

भीष्म की इन बातों पर दुर्योधन को विश्वास नहीं हुआ। उसे संदेह था कि कहीं सुबह तक भीष्म का मन न बदल जाए, या कोई इन स्वर्ण तीरों को चुरा न ले इसलिए उसने भीष्म से वे पांच तीर यह कहते हुए मांग लिए कि वे तीर उसके पास सुरक्षित रहेंगे और सुबह युद्ध के समय उन्हें तीर लौटा देगा। भीष्म ने दुर्योधन को सोने के पांचों तीर दे दिए।

इस घटना का भान श्रीकृष्ण को हो गया। उन्होंने तत्काल अर्जुन को बुलवा भेजा। अर्जुन के पहुंचते ही श्रीकृष्ण ने उसे दुर्योधन द्वारा वरदान देने की बात याद दिलाई। दरअसल दुर्योधन द्वारा अर्जुन को वरदान देने की घटना कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले की है, जब पांडव वनवास भोग रहे थे। जिस जंगल में पांडव अपनी पहचान छुपाकर रह रहे थे, उसी के ठीक सामने एक सरोवर के किनारे दुर्योधन ने शिकार के दौरान अपना शिविर लगा रखा था। जब दुर्योधन सरोवर में स्नान कर रहा था तभी एक गंधर्व वहां से गुजरा तो दोनों में युद्ध होने लगा। गंधर्व ने दुर्योधन को परास्त कर दिया और वह उसे बंदी बनाकर ले जाने लगा, तभी अर्जुन ने आकर दुर्योधन को गंधर्व से मुक्त कराया था। यह देख दुर्योधन अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने अर्जुन को वरदान मांगने को कहा। अर्जुन ने दुर्योधन से तत्काल वरदान न मांगते हुए यह कहा कि उसे जब जरूरत होगी तब वर मांग लेगा।  

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह घटना याद दिलाते हुए दुर्योधन से वरदान मांगने को कहा। अर्जुन ने ऐसा ही किया। वह उसी रात दुर्योधन के पास पहुंचा और पूर्व की घटना याद दिलाते हुए वरदान के रूप में उससे स्वर्ण के वे पांच तीर मांग लिए। दुर्योधन को इस बात पर क्रोध भी आया और आश्चर्य भी हुआ, लेकिन चूंकि वह सच्चा क्षत्रिय था इसलिए उसने अपना वचन पूरा किया। उसने अर्जुन को वे पांचों तीर दे दिए। 

अगली सुबह दुर्योधन पुनः भीष्म के पास पहुंचा और पूरी घटना बताते हुए दोबारा अभिमंत्रित तीर मांगे, लेकिन भीष्म ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस तरह दुर्योधन के एक वचन और गलती के कारण भीष्म के हाथों पांडवों की मृत्यु होने से बच गई।

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