संधिकाल में क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य

पं. गजेंद्र शर्मा, ज्योतिषाचार्य

हिंदू धर्म में दिन-रात मिलाकर कुल 8 प्रहर माने गए हैं। यानी 24 घंटे में प्रत्येक प्रहर तीन घंटे का होता है। इन प्रहरों के ठीक संधिकाल में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। कुछ मिनट रूककर किया जाता है। आइए जानते हैं ऐसा क्यों?


हिंदू धर्म में समय का बड़ा महत्व बताया गया है। किसी भी कार्य का प्रारंभ करने के लिए समय शुभ समय देखा जाता है। इसीलिए हमारे प्राचीन ग्रंथों, वेद, पुराणों में समय की सूक्ष्मतम तक गणना की गई है। यह भी सही है कि दुनिया को समय का इतना सूक्ष्म ज्ञान भारत ने ही दिया। आमतौर पर वर्तमान में सेकंड, मिनट, घंटे, दिन-रात, माह, वर्ष, दशक और शताब्दी तक की ही प्रचलित धारणा है, लेकिन हिंदू धर्म में एक अणु, तृसरेणु, त्रुटि, वेध, लावा, निमेष, क्षण, काष्ठा, लघु, दंड, मुहूर्त, प्रहर या याम, दिवस, पक्ष, माह, ऋतु, अयन, वर्ष (वर्ष के भी पांच भेद- संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर, युगवत्सर हैं)। फिर इसके बाद दिव्य वर्ष, युग, महायुग, मन्वंतर, कल्प, अंत में दो कल्प मिलाकर ब्रह्मा का एक दिन और रात, तक की विस्तृत समय पद्धति वेदों में वर्णित है। 

इन्हीं में से समय का एक मान है प्रहर। हिंदू धर्म ग्रंथों में 24 घंटे के दिन-रात को मिलाकर कुल आठ प्रहर माने गए हैं। औसतन एक प्रहर तीन घंटे का होता है। यह साढ़े सात घटी का होता है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। इस प्रकार दिन के चार और रात के चार प्रहर मिलाकर कुल आठ प्रहर होते हैं। इन आठों प्रहरों को एक-एक नाम दिया गया है।

दिन के चार प्रहर- पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल।
रात के चार प्रहर- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा।

सूर्योदय के समय दिन का पहला प्रहर प्रारंभ होता है जिसे पूर्वान्ह कहा जाता है। दिन का दूसरा प्रहर जब सूरज सिर पर आ जाता है तब तक रहता है जिसे मध्याह्न कहते हैं। इसके बाद अपरान्ह (दोपहर बाद) का समय शुरू होता है, जो लगभग 4 बजे तक चलता है। 4 बजे बाद दिन अस्त तक सायंकाल चलता है। फिर क्रमश: प्रदोष, निशिथ एवं उषा काल। सायंकाल के बाद ही प्रार्थना करना चाहिए।

इसलिए नहीं किए जाते संधिकाल में शुभ कार्य
24 घंटे में आठ प्रहर हैं तो संधि भी आठ तरह की होती है। संधि अर्थात एक प्रहर के समाप्त होने का समय और दूसरे प्रहर के प्रारंभ होने का समय। मोटे तौर पर सूर्योदय सुबह 6 बजे और सूर्यास्त शाम 6 बजे माना जाता है। इस गणना के अनुसार सुबह 6 से 9 पहला प्रहर, 9 से 12 दूसरा प्रहर, 12 से 3 तीसरा प्रहर और 3 से सायं 6 तक चौथा प्रहर। इसी तरह रात्रि में भी चार प्रहर होते हैं। इनमें भी दिन के प्रहरों का अधिक महत्व है। इस तरह ठीक 9, 12, 3 और 6 बजे के समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। एक-दो मिनट बाद कार्य किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि संधिकाल में अनिष्ट शक्तियां प्रबल हो जाती हैं। इसलिए इन समयों में यात्रा करना भी निषिद्ध माना गया है। इसका दूसरा कारण यह है कि जिस प्रकार दो ऋतुओं, दो मौसमों के संधिकाल में प्रकृति विचलित हो जाती है ठीक उसी प्रकार दो प्रहरों के संधिकाल में हमारा मन, मस्तिष्क भी कुछ अनबैलेंस हो जाता है। इसलिए उस समय लिया गया निर्णय फलीभूत नहीं होता। 

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