पं. गजेंद्र शर्मा, ज्योतिषाचार्य
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जीवन में स्वस्थ और उत्तम संतान होना सबसे बड़ा सुख माना गया है। दांपत्य जीवन भी तभी सफल माना जाता है, जब उनके यहां स्वस्थ संतान का जन्म हो। इसीलिए नवदंपती को हमेशा बड़े-बुजुर्ग दूधो नहाओ पूतो फलो का आशीर्वाद देते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि आपके यहां उत्तम संतान का जन्म हो और आप खूब तरक्की करें। लेकिन कई दंपतियों को संतान सुख नहीं मिल पाता। पत्नी को लगातार गर्भपात होता हो या तो उनके परिवार में संतान पैदा ही नहीं होती, या फिर पैदा होने के बाद से वह लगातार बीमारियों से घिरी रहती है। कई दंपतियों की संतानें तो पैदा होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। यह उनके लिए सबसे दुखद घटना होती है।
क्या आप जानते ऐसा क्यों होता है? क्यों कोई दंपती संतान सुख से वंचित रह जाता है? क्यों किसी दंपती की संतानें गंभीर रोगों के साथ जन्म लेती हैं? या क्यों किसी की संतानें जीवित नहीं रह पातीं? ज्योतिष शास्त्र में इसका कारण और इस अत्यंत संकटपूर्ण और दुखद समस्या का निवारण बताया गया है।
ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार जब व्यक्ति को संतान से जुड़ी समस्याएं आएं तो उस व्यक्ति की जन्मकुंडली में पितृदोष होता है। संतान के अलावा कई बार देखा गया है व्यक्ति के विवाह में भी बड़ी बाधाएं आती हैं। उसके जीवन में कोई काम ठीक से नहीं हो पाता। आर्थिक तंगी हमेशा बनी रहती है और परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार बना रहता है। ये सब घटनाएं पितृदोष के कारण होती हैं।
ऐसे बनता है पितृदोष
जन्मकुंडली में पितृदोष है या नहीं, यह ग्रहों की विशेष स्थिति देखकर पता लगाया जाता है।- पितृ दोष सूर्य और राहु की युति के कारण बनता है। कुंडली में पंचम स्थान संतान का होता है। जब पंचम स्थान में सूर्य और राहु साथ में बैठे हों।
- नवम स्थान धर्म स्थान होता है। जब इस स्थान में सूर्य और राहु साथ में बैठे हों।
- अकेला राहु पंचम और नवम में हो और सूर्य अशुभ स्थिति में हो तो भी पितृदोष माना जाता है।
- राहु लग्न या द्वितीय स्थान में हो और उसके साथ अन्य कोई शुभ ग्रह न हो या शुभ ग्रह की दृष्टि न हो।
- नवम स्थान पितरों का स्थान भी माना जाता है। यदि यह स्थान पाप ग्रहों से दूषित है हो पितृदोष बनता है।
- नवम स्थान का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो भी पितृदोष का कारण बनता है।
पितृदोष के लक्षण क्या?
आपकी कुंडली में पितृदोष है या नहीं इसका पता जीवन में आ रही परेशानियों और कुछ लक्षणों से लगाया जा सकता है।- पितृदोष सबसे अधिक संतान से संबंधित बातों पर प्रभाव डालता है। यदि दंपती की संतानें नहीं हो पा रही हैं। स्त्री को बार-बार गर्भपात हो रहा है। संतान पैदा होने के बाद से बार-बार बीमार हो रही हो। संतान जीवित न रह पा रही हो।
- विवाह नहीं हो पा रहा हो। सगाई होने के बाद टूट रही हो।
- दांपत्य जीवन में लगातार तनाव बना हुआ हो। तलाक तक की नौबत आ रही हो।
- नौकरी में बार-बार बदलाव हो रहा है। आजीविका का संकट हो।
- परिवार में अचानक बड़ी-बड़ी समस्याएं आने लगे। कोई सदस्य लगातार बीमार रहे। कोर्ट-कचहरी के मामले चलते रहें।
पितृदोष निवारण कैसे हो?
शास्त्रों के अनुसार किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृदोष तभी बनता है, जब उसके परिवार के मृत परिजनों की कोई इच्छा अधूरी रह गई हो और वादा करने के बाद भी वह पूरी नहीं कर रहे हो। मृत्यु के बाद परिजनों का उत्तरकार्य ठीक से न किया गया हो। श्राद्ध न किया जा रहा हो तो पितृदोष परेशान करता है। इस दोष का निवारण किया जा सकता है। वैसे तो पितृदोष निवारण के लिए सबसे उत्तम समय श्राद्धपक्ष का होता है लेकिन उसके लिए पूरे साल इंतजार करना होता है। ज्योतिष शास्त्र में कई अन्य उपाय बताए गए हैं जिन्हें श्रद्धापूर्वक करके पितृदोष से मुक्ति संभव है:- सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की जड़ में एक जनेउ रखिए और एक जनेउ भगवान विष्णु के नाम से वहीं रखिए। ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हएु पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा करें और प्रत्येक परिक्रमा के साथ एक-एक मिठाई का टुकड़ा रखते जाएं। परिक्रम पूर्ण होने पर पीपल के वृक्ष और विष्णु भगवान से क्षमा प्रार्थना करें। इससे पितृदोष शांत होता है।
- श्रावण के महीने में बरगद का वृक्ष लगाएं और प्रतिदिन उसमें एक लोटा जल डालें।
- शिवलिंग पर प्रतिदिन जल और बेलपत्र अर्पित करें।
- जरूरतमंदों को अन्न और वस्त्र दान करें।
- परिवार के बुजुर्गों की सेवा करें। वृद्धाश्रम में यथाशक्ति चीजें दान करें।
- सोमवार का व्रत करें।
- रूद्राअष्टक का नियमित पाठ करें।
- पितरों को याद करके उनके निमित्त किसी योग्य ब्राह्मण या जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
- श्राद्धपक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान करें।
- दुर्गा सप्तशती में बताए गए देवी कालिका स्तोत्र का पाठ करें।
- त्रयंबकेश्वर, नासिक में नारायणबलि पूजा करवाई जाती है।
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