इन चीजों से करेंगे हवन, तो पाएंगे समृद्धि

पं. गजेंद्र शर्मा, ज्योतिषाचार्य


हिंदू सनातन परंपरा में यज्ञ या हवन का बड़ा महत्व बताया गया है। हवन की अग्नि शुद्धिकरण का सबसे बड़ा माध्यम है। कुंड में अग्नि के माध्यम से देवी-देवताओं को हविष्य पहुंचाने की प्रक्रिया को हवन कहते हैं। हविष्य वह पदार्थ है जिनसे हवन की पवित्र अग्नि में आहुति दी जाती है। पुरातन काल से ही किसी कामना की पूर्ति के लिए यज्ञ करने की परंपरा रही है। ऋषि-मुनि दिव्य दृष्टि प्राप्त करने, देवताओं को प्रसन्न करने, वर्षा कराने, राक्षसों का नाश करने जैसे अनेक कार्यों के लिए यज्ञ करते आए हैं। राजा-महाराजा अपने राज्य की खुशहाली, विस्तार और शत्रुओं से रक्षा के लिए यज्ञ करते थे।


जिस तरह वेदों में यज्ञ या हवन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है, उसी तरह ज्योतिष शास्त्र में भी हवन का उतना ही महत्व है। नवग्रहों की शांति के लिए तथा प्रत्येक ग्रह के मंत्र जप के बाद जप संख्या का दशांश हवन करने का विधान है। दरअसल हवन के बिना कोई भी पूजा, मंत्र जप पूर्ण नहीं हो सकता। विभिन्न ग्रंथों में यज्ञ पद्धति के संबंध में बताया गया है कि अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए हवन में अलग-अलग सामग्रियों की आहुति दी जाती है। यदि सुख-समृद्धि की कामना के लिए हवन किया जा रहा है तो उसमें कोई विशिष्ट वस्तु की आहुति दी जाती है। आरोग्यता के लिए अलग सामग्री का प्रयोग किया जाता है तथा नवग्रहों की शांति के निमित्त किए जा रहे हवन में अलग तरह की सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। कामना के अनुसार हवन की पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ, जौ, तिल आदि की आहुति दी जाती है।

कामना के अनुसार समिधा

समिधा उस लकड़ी को कहते हैं जो हवन या यज्ञ में प्रयुक्त की जाती है। यदि नवग्रहों की शांति के लिए हवन किया जा रहा है तो प्रत्येक ग्रह के अनुसार अलग-अलग समिधा का उपयोग किया जाता है। सूर्य के लिए मदार, चंद्र के लिए पलाश, मंगल के लिए खेर, बुध के लिए चिड़चिड़ा, गुरु के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दूर्वा और केतु के लिए कुशा की समिधा हवन में प्रयुक्त की जाती है। मदान की समिधा रोगों का नाश करती है। पलाश की समिधा सभी कार्यों में उन्नति, लाभ देने वाली है। पीपल की समिधा संतान, वंश वृद्धि, गूलर की स्वर्ण प्रदान करने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु प्रदान करती है और कुशा की समिधा सभी मनोरथ सिद्ध करने के लिए प्रयोग की जानी चाहिए। अन्य समस्त देवताओं के लिए आम, पलाश, अशोक, चंदन आदि वृक्ष की समिधा हवन में डाली जाती है।

ऋतुओं के अनुसार समिधा

यज्ञीय पद्धति में ऋतुओं के अनुसार समिधा उपयोग करने के लिए भी स्पष्ट नियम बताए गए हैं। जैसे वसंत ऋतु में शमी, ग्रीष्म में पीपल, वर्षा में ढाक या बिल्व, शरद में आम या पाकर, हेमंत में खेर, शिशिर में गूलर या बड़ की समिधा उपयोग में लाई जानी चाहिए।

पर्यावरण शुद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए हवन

अग्नि में मूलतः शुद्धिकरण का गुण होता है। वह अपनी उष्णता से समस्त बुराइयों, दोषों, रोगों का नाश करती है। अग्नि के संपर्क में जो भी आता है वह उसे शुद्ध कर देती है। इसीलिए सनातन काल से यज्ञ, हवन की परंपरा चली आ रही है। पाश्वात्य देशों के अनेक शोधकर्ता यह साबित कर चुके हैं कि जिस जगह नियति अग्निहोत्र या हवन होता है, वहां की वायु अन्य जगह की वायु की अपेक्षा अधिक स्वच्छ होती है। हवन में डाली जाने वाली वस्तुएं न सिर्फ पर्यावरण को शुद्ध रखती हैं, बल्कि रोगाणुओं को भी नष्ट कर देती है। इससे कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। हवन में डाले जाने वाले कपूर और सुगंधित दृव्य वातावरण में एक विशेष प्रकार का आरोमा फैला देते हैं जिसका मन-मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कैसी हो हवन सामग्री

हवन में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री सड़ी-गली, घुन, कीड़े लगी हुई, भीगी हुई नहीं होना चाहिए। श्मशान में लगे वृक्षों की समिधा का प्रयोग हवन में नहीं करना चाहिए। पेड़ की जिस डाल पर परिंदों का घोसला हो उसे काटकर हवन में प्रयुक्त नहीं करना चाहिए। कोई दूसरी डाल काटकर उपयोग में लाएं। जंगल और नदी के किनारे लगे वृक्षों की समिधा हवन के लिए सर्वश्रेष्ठ कही गई है। 

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